बुधवार, 16 जून 2010

PANNA DHAY

पन्ना धाय
बनवीर जब तलवार लेकर नन्हे से उदयसिंह को मरने के लिए उदयसिंह के कमरे की और बड़ा चला आ रहा था, उस समय इस सिसोदिया चिराग को बचाने का साहस किसी में नहीं हुआ, तब एक नारी एक माँ ने हृदय पर पत्थर रखकर अपने बेटे का माथा चूमा, आँखों से आंसू छलकने नहीं दिया, उस समय माँ का हृदय पत्थर नहीं हुआ, उसे तो अपने नामक का कर्ज उतरना था, तुरंत उदयसिंह के पलने में अपने पुत्र को लिटा दिया और उदयसिंह को वह से हटा दिया, हाथ माँ के कांप नहीं रहे थे, क्या स्थिति होगी उस माँ सोचो माँ तो माँ होती हें, बलिदानी माँ वीर पन्नाधाय, बनवीर ने जब पन्नाधाय से पुचा खा हें उदयसिंह तब उस बलिदानी माँ ने अपने बेटे की और इशारा कर दिया, जिस और उसका पुत्र लेटा था, बनवीर की तलवार लहराई एक पल में पन्ना के ह्रदय का टुकड़ा सदा के लिए दुनिया से चला गया, उस वीर माँ बलिदानी माँ को नमन , यदि पन्ना नहीं होती तो उदयसिंह नहीं होता और उदयसिंह नहीं होता तो उदयपुर नहीं होता और वीर शिरोमणि राणा प्रताप नहीं होते और प्रताप का इतिहास नहीं होता, एक तरफ हल्दीघाटी हें तो वह चेतक का स्मारक हें, एक तरफ मोतिमंगरी हें तो वह महाराणा प्रताप, चेतक और भीलुराना तथा अन्य वीरो की प्रतिमा मिल जाएगी, चावंड में प्रताप का इतिहास मिल जायेगा,
        दुर्भाग्य हें नहीं मिलेगा तो आपको पन्नाधाय का इतिहास और उस वीर माता की कोई प्रतिमा किसी भी चोराहे पर नहीं नजर आती हें, क्या उस माँ को इतने भी सम्मान का हक़ नहीं हें,

मंगलवार, 15 जून 2010

Stone eye

पथरायी आँखे
पाषाण को तरसने वाली आँखे खुद पाषाण हो चुकी हें, पत्थर को रूप देने वाली खुद पत्थर हो चुकी हें आँखे हें, दो जून की